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बसंत पंचमी (BASANT PANCHAMI)

🌻बसंत पंचमी 🌻

DEVI SARASWATI
Image by Amit Karkare from Pixabay

बसंत पंचमी हिन्दुओं का पवित्र त्यौहार है। यह त्यौहार ऋतुराज बसंत के आगमन पर हर साल माघ माह के शुकल पक्ष की पंचमी  को मनाया जाता है। बसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है क्योंकि इस समय मौसम बहुत सुहावना होता है। मौसम की इस ऋतु में चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। प्रकृति फूलों  की रंग-बिरंगी आभा से सुशोभित खुशहाली का सन्देश देती है। प्रकृति का यह मनोहर दृश्य ऋतुराज बसंत के आगमन पर सर्वत्र दिखाई देता है। इस समय सरसों के पीले फूलों से सजे खेत धरती पर अद्भुत सौन्दर्य का सृजन करते है।

बसंत का अर्थ कहीं न कहीं रंग से जुड़ा प्रतीत होता है। वास्तव में बसंत का अभिप्राय  पीले व केसरी रंग से है और पंचमी यानि तिथि से है । इस तरह बसंत पंचमी प्रकृति के बसंती स्वरूप का गुणगान  है जो प्रकृति को अदभुत सौंदर्य प्रदान करता है। 

बसंत पंचमी और माता सरस्वती का पूजन 


बसंत पंचमी / वसंत पंचमी  के दिन माँ सरस्वती की आराधना की जाती है। माँ सरस्वती बुद्धि, विद्या, ज्ञान और  संगीत की देवी है, इसलिए इस दिन इन की पूजा अर्चना कर भक्त लोग उनसे अच्छी बुद्धि, विद्या, ज्ञान और संगीत का वरदान माँगते है।  पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन माँ सरस्वती का जन्म हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन ब्रहमा जी ने अपनी सृष्टि को सुर-संगीत,वाणी और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की उत्पत्ति कर अद्भुत सौंदर्य से सँवारा  था। अतः इस दिन को अत्यधिक पावन और पवित्र माना जाता है। इसे रंगपंचमी, वसंतोत्सव आदि नामों से भी जाना जाता है। बसंत पंचमी के चालीस दिन बाद होली का पर्व आता है। 

बसंत पंचमी / वसंत पंचमी  और अनबूझ महूर्त 


इस दिन को धार्मिक दृश्टिकोण से भी अत्यधिक पावन और श्रेष्ठ माना जाता है । इस दिन को अनबूझ योग (महूर्त ) कहते हैं  अर्थात इस दिन को किसी भी शुभ कार्य हेतु सर्वश्रेष्ट माना जाता है। अनबूझ महूर्त के कारण विशेष रूप लोग इस दिन  गृह प्रवेश और विवाह जैसे शुभ कार्य करते है।  


बसंत पंचमी के दिन भक्तगण माता सरस्वती की पूजा अर्चना करते है। इस दिन भक्तगण  पीले वस्त्र धारणकर माँ सरस्वती को पीली वस्तुओं का भोग लगाते हैं। जैसे -लड्डू , हलवा, बर्फी आदि।  

स्कूलों में भी माँ सरस्वती का गुणगान किया जाता है। स्कूलों  में श्लोक और स्तुति पाठ से पूरा वातावरण प्रफुल्लित प्रतीत होता है। विद्या अध्ययन करने से पूर्व इस श्लोक  का पाठन अत्याधिक शुभ माना जाता है।  

सरस्वती नमस्तुभयं वरदे कामरुपिणि। 
विद्यारंभं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा । 

अर्थ - ज्ञान की देवी माँ सरस्वती को मेरा नमन, वर देने वाली माँ को मेरा प्रणाम ।  अपनी विद्या आरंभ करने से पूर्व आपका स्मरण करता /करती हूँ, मुझ पर अपनी कृपा बनाये रखना । 

धार्मिक ग्रंथों  में माँ सरस्वती को शारदा, वीणापाणि , भारती, वागीश्वरी और हंसवाहिनी नामों  से भी जाना जाता है।  

बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में  माँ सरस्वती की प्रतिमा बैठायी जाती है, और उनकी पूजा अर्चना की जाती है। अगले दिन इस प्रतिमा को नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। 


बसंत पंचमी और पंतंगबाजी (BASANT PANCHAMI AND KITE FLYING)


मुख्य तौर से पंजाब और हरियाणा  में इस दिन पतंग उड़ाने का प्रचलन है। परन्तु आजकल लगभग पूरे उत्तर भारत में इस अवसर पर पतंग बाजी की जाती है। बच्चे और नौजवान पतंगबाजी में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते है। बसंत पंचमी के दिन आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भरा नज़र आता  है। धार्मिक उत्सव के इस माहौल में पतंगबाजी का मनोरंजन प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य में चार-चाँद लगा देता है।  


बसंत पंचमी और अक्षराभ्यास 


बसंत पंचमी  दिन बच्चों को अक्षराभ्यास कराया जाता है । माता-पिता इस दिन माता सरस्वती की पूजा के दौरान अपने नव बालक-बालिकाओं को प्रथम अक्षराभ्यास करवाकर उनकी शिक्षा का आरम्भ करते हैं । कला और संगीत से जुड़े लोग भी इस दिन माता सरस्वती का पूजन करते है और अपने क्षेत्र में उन्नति की कामना करते है। 

बसंत के  इस पर्व पर प्रकृति एक अद्भुत श्रृंगार से सभी का मन मोह लेती है। सर्वत्र उमंग और खुशहाली, खेतों में  लहराती फसलें, सरसों के फूलों की आभा, पक्षियों का कलरव और भवरों का गुंजन प्रकृति को नया रूप देता है । 

माँ  सरस्वती को नमन  करते हुए, सभी को इस पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनायें ।
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