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गाय की आत्मकथा | Autobiography of cow

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Photo by  Juliana Amorim  on  Unsplash मेरा यह लेख मेरे दिल के बहुत करीब पशु गाय के विषय मे हैं। हिन्दू धर्म मे गाय की महत्ता मात्र एक पशु नहीं अपितु एक ईश्वरीय स्वरूप की है, जो अपने दुग्ध से हमारा पौषण करती है। गाय को धेनु, कामधेनु आदि नामों से भी जाना जाता है ।  गाय की आत्मकथा एक मार्मिक विषय है। ३३ करोड़ देवी देवताओ को अपने अंदर समाहित करने वाली गाय आज अपने ही उद्धार के लिए तरसती प्रतीत होती है । समुन्द्र मंथन के समय देवीय रूप से अवतरित गाय जिसे वो सम्मान प्राप्त था जो एक देवी देवता को प्राप्त होता है, मानव के लोभवश आज जीवन का एक कटु सत्य झेल रही है। चलिए शुरू करते है- गाय की आत्मकथा - मैं गाय हूँ । मैं भारतवर्ष मे पाया जाने वाला एक देवीय पशु कहलाती हूँ । लोग मुझे गौ माँ व माता के रूप मे भी पूजते है। मैं एक दुधारू पशु हूँ ।  मेरा वर्तमान चाहे कठोर और विदारक है परंतु मेरा भूत बहुत ही वैभवशाली रहा है ।  मेरा वैभवशाली इतिहास  समुन्द्र मंथन से प्राप्त मैं कामधेनु कहलाई। मैं भी समुन्द्र से प्राप्त चौदह रत्नों मे से एक थी। ऋषियों द्वारा मेरा देवतुल्य सत्कार किया जाता था और मैं अपने पंचगव्य

रावण | RAVAN

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रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त और उपासक था । उसने भगवान शिव को प्रसन्न कर  अनेकों शक्तियाँ प्राप्त की । भगवान शिव के परम भक्तों मे उसका स्थान सर्वश्रेष्ट है। वह भगवान शिव का ऐसा भक्त था, जिसने भगवान शिव के द्वारा दिए हुए नाम “रावण” को अंगीकार किया ।  दशानन को रावण क्यों कहते हैं ?   रावण को उसका यह नाम अहंकारवश  कैलाश पर्वत को अपने बाहुबल से उठाने के परिणामस्वरूप प्राप्त हुआ था, जब भगवान शिव ने अपने अंगूठे के भार से रावण की भुजा को कैलाश पर्वत के नीचे दबा दिया और उसके अहंकार को चूर-चूर किया । परंतु इस घोर विपत्ति और पीड़ा की स्थिति मे भी उसने भगवान शिव की तांडव स्तुति की रचना कर डाली । उसकी इस स्तुति से पूरा ब्रह्मांड गुंजायमान हो गया जिसके फलस्वरूप भगवान शिव ने प्रकट होकर उसे “रावण” नाम दिया था। परम ज्ञानी रावण  रावण 4 वेदों, 6 शास्त्रों और 10  दिशाओं का  निपुण ज्ञाता था उसकी गिनती बहुत बड़े ज्ञानियों मे की जाती है । इसका अलावा वह एक अच्छा राजनितज्ञ, प्रकाण्ड पंडित,  निपुण संगीतज्ञ और रचनाकार था ।  उसने बहुत से ग्रंथों और भगवान शिव की स्तुति की रचना की । उसने एक वाद्य यंत्र की रचना भी

जन्माष्टमी

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जन्माष्टमी हिंदुओं का पवित्र त्योहार हैं। यह भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप मे मनाया जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी, श्रीकृष्ण जयंती, अष्टमी रोहिणी और श्री जयंती के नाम से भी जाना जाता है । जन्माष्टमी कब और क्यों मनाई जाती है?  हर साल भाद्र मास की अष्टमी को भगवान कृष्ण के जन्म दिवस के तौर पर इस त्योहार को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र मे हुआ था। जिसे जयंती योग कहते है। इस योग को बहुत ही शुभ माना जाता है। अंग्रेजी कैलंडर के हिसाब से जन्माष्टमी हर साल अगस्त ओर सितंबर माह मे मनाई जाती है। पौराणिक कथा  इस त्योहार को मनाने के पीछे एक कथा प्रचलित है। भगवान कृष्ण को विष्णु जी का आठवाँ अवतार कहा जाता है। जन्माष्टमी के दिन धरती पर भगवान के इस आठवे अवतार का अवतरण हुआ था। कथा इस प्रकार है – मथुरा का राजा कंस बहुत ही अत्याचारी था। उसने अपने घमंड व स्वार्थ के चलते सभी पर अत्याचार करने शुरू कर दिए थे। परंतु एक दिन एक आकाशवाणी ने उसको भयभीत कर दिया, जिस मे उसकी मौत का कारण उसकी लाड़ली बहन की आठवीं संता

🕉 महाशिवरात्रि पर्व 🕉

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  ॐ नीलकण्ठाय नमः   🕉 महाशिवरात्रि पर्व  🕉 Image by  Nikhil Mishra  from  Pixabay   महाशिवरात्रि का पर्व माता पार्वती और देवादि देव महादेव के विवाह उत्सव का प्रतीक है। इस पर्व के विषय में बताने से पहले हमें परमात्मा शिव के बारे में जानने की  आवश्यकता है।  शिव कौन है ? सत्यम शिवम् सुंदरम "सत्यम-शिवम-सुंदरम" से तात्पर्य "सत्य-ईश्वर-सौंदर्य " से है। शिव का अर्थ -कल्याणकारी,ज्योतिस्वरूप परमपिता से है, क्योंकि शिव समस्त सृष्टि के पालनहार हैं, इसलिए वह कल्याणकारी है। जीवन परमपिता परमात्मा का दिया हुआ,अमूल्य उपहार है। जीवन को "सत्य-चेतना-आनंद" के रूप में अनुभव किया जाता है। सृष्टि पर जनम-मरण एक मात्रा सत्य है, शिव ही सबके पालनहार है, उनकी रचित यह रचना अति मनोहर है। हो निर्विकार तथापि तुम हो भक्तवत्सल सर्वदा। हो तुम निरीह तथापि अद्भुत सृष्टि रचते हो सदा। (हे ईश्वर आप विकार हीन होते हुए भी भक्तो से स्नेह करने वाले हो। इच्छा एवं तृष्णा रहित होते हुये भी आपने इस अद्भुत सृष्टि की रचना की। ) जिस प्रकार बीज से किसी वृक्ष की उत्पत्ति होती है उसी प्रकार परमात्मा

बसंत पंचमी (BASANT PANCHAMI)

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🌻बसंत पंचमी 🌻 Image by  Amit Karkare  from  Pixabay बसंत पंचमी हिन्दुओं का पवित्र त्यौहार है। यह त्यौहार ऋतुराज बसंत के आगमन पर हर साल माघ माह के शुकल पक्ष की पंचमी  को मनाया जाता है। बसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है क्योंकि इस समय मौसम बहुत सुहावना होता है। मौसम की इस ऋतु में चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। प्रकृति फूलों  की रंग-बिरंगी आभा से सुशोभित खुशहाली का सन्देश देती है। प्रकृति का यह मनोहर दृश्य ऋतुराज बसंत के आगमन पर सर्वत्र दिखाई देता है। इस समय सरसों के पीले फूलों से सजे खेत धरती पर अद्भुत सौन्दर्य का सृजन करते है। बसंत का अर्थ कहीं न कहीं रंग से जुड़ा प्रतीत होता है। वास्तव में बसंत का अभिप्राय  पीले व केसरी रंग से है और पंचमी यानि तिथि से है । इस तरह बसंत पंचमी प्रकृति के बसंती स्वरूप का गुणगान  है जो प्रकृति को अदभुत सौंदर्य प्रदान करता है।  बसंत पंचमी और माता सरस्वती का पूजन  बसंत पंचमी / वसंत पंचमी  के दिन माँ सरस्वती की आराधना की जाती है। माँ सरस्वती बुद्धि, विद्या, ज्ञान और  संगीत की देवी है, इसलिए इस दिन इन की पूजा अर्चना कर भक्त लोग उनसे अच्छी बुद्ध

लोहड़ी, मकर संक्रांति और पोंगल

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🌞लोहड़ी, मकर संक्रांति और पोंगल 🌞 भारत त्यौहारों का देश है। पूरे वर्ष में यहाँ कई प्रकार के त्यौहार मनाये जाते हैं। जैसा की आप जानते हैं की भारत एक कृषि प्रधान देश हैं और कई त्यौहार केवल कृषि से  सम्बंधित है। जिसके  कारण  फसलों  की कटाई पर पूरे भारत में  कई त्यौहार मनाये जाते है। जनवरी माह को यदि त्यौहारों का संगम कहा जाए तो अतिशयोक्ति  नहीं होगी।  वास्तव में हर्ष और उल्लास के प्रतीक यह पर्व जीवन में एक नए जोश का संचार करते है। लोहड़ी का पर्व और उसका महत्त्व  Photo by  Deepika pal  from  Pexels जनवरी त्यौहारों की श्रृंखला के लिए प्रसिद्ध है जो लगभग उसी दिन आते है या फिर मात्र एक दिन  के अंतराल  पर मनाये जाते  हैं। इस श्रृंखला की शुरुआत लोहड़ी के पर्व से होती है। यह पर्व  उत्तरी भारत मुखयतः पंजाब क्षेत्र में  बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार आमतौर पर हर वर्ष १३ (तेरह)जनवरी को मनाया जाता है। दरअसल यह त्योहार फसल की कटाई पर मनाया जाने वाला त्यौहार है।   आमतौर पर यह पंजाब का एक लोक पर्व है जिसे  पंजाब और पूरे उत्तर भारत में बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। विशेष रूप से नव विवाहित जोड़