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सफल जीवन की परिभाषा

सफल जीवन की परिभाषा

यह एक छोटी सी कहानी है -जिसमे एक बहुत ही बढ़िया सीख छुपी है ।  कहानी का स्वरूप थोड़ा छोटा जरूर है, परंतु इससे मिलने वाली सीख बहुत ही गहरी है । तो चलिए बिना विलंब कहानी को शुरू करते हैं - 

एक बार एक बेटे ने अपने पिता से पूछा, "सफल जीवन क्या है?"

उसके पिता ने कोई जवाब नहीं दिया और अपने बेटे को पतंग उड़ाने के लिए छत पर ले गए । पिता जी  पतंग उड़ा रहे थे और बेटा टकटकी लगा,  उन्हें बढ़े ध्यान से देख रहा था । 

कुछ देर बाद उत्सुकतापूर्वक  बेटे ने कहा, पापा इस धागे की वजह से हमारी  पतंग आगे तक नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें?

बेटे ने  फिर कहा - "अगर हम धागा तोड़ दें,  तो ये पतंग और ऊपर जा सकती है।”

बेटे के  दो बार कहने पर पिता ने अंततः  धागा तोड़ दिया । इसके बाद वे दोनों उस पतंग को देखने लगे। उन्होंने देखा कि पहले  पतंग थोड़ी ऊपर गई,  लेकिन उसके बाद वह फड़फड़ाती हुई नीचे आई और दूर किसी अनजान जगह पर जा गिरी।

इसके बाद पिता ने अपने बेटे की ओर देखते हुए कहा, 'बेटा, जीवन में जब हम ऊंचाई पर होते हैं, सफलता प्राप्त करते हैं तो अक्सर एक ही बात महसूस होती है कि हम बंधे हुए हैं और ये बंधन है- जैसे घर, परिवार, माता-पिता, शिक्षक आदि। हमें ऊपर जाने से रोक रहे हैं । 

इसलिए उस समय हम  इन बंधनों से मुक्त होना चाहते हैं। लेकिन बेटे, सच तो यह है कि कुछ धागे ही हैं, जो हमें उस ऊंचाई पर बनाए रखते हैं। इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर चले जायेंगे,  लेकिन बाद में हमारा हश्र बिना धागे की पतंग जैसा ही होगा।

इसलिए अगर जिंदगी में बुलंदियों पर रहना है, तो रिश्ते के इन धागों को कभी मत तोड़ना । 

वास्तव में धागे और पतंग के संतुलन की तरह कार्य और संबंधों में सफलता के सफल संतुलन से प्राप्त सफलता ही सफल जीवन कहलाती है।”

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