लोहड़ी, मकर संक्रांति और पोंगल
🌞लोहड़ी, मकर संक्रांति और पोंगल🌞
लोहड़ी का पर्व और उसका महत्त्व
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जनवरी त्यौहारों की श्रृंखला के लिए प्रसिद्ध है जो लगभग उसी दिन आते है या फिर मात्र एक दिन के अंतराल पर मनाये जाते हैं। इस श्रृंखला की शुरुआत लोहड़ी के पर्व से होती है। यह पर्व उत्तरी भारत मुखयतः पंजाब क्षेत्र में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार आमतौर पर हर वर्ष १३ (तेरह)जनवरी को मनाया जाता है। दरअसल यह त्योहार फसल की कटाई पर मनाया जाने वाला त्यौहार है।
आमतौर पर यह पंजाब का एक लोक पर्व है जिसे पंजाब और पूरे उत्तर भारत में बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। विशेष रूप से नव विवाहित जोड़ी और नवजात शिशु की पहली लोहड़ी बहुत ही धूम-धाम से मनाई जाती है। इस दिन रात को अलाव जलाकर,उसका पूजन मूँगफली, फुल्ले, गुड़ ओर तिल की रेवड़ी को अग्नि को समर्पित करके किया जाता है। इस दिन लोग पंजाब का लोकप्रिय नृत्य भागड़ा करते है। ढोल की थाप पर लोगों का थिरकना एक अलग ही छटा बिखेरता है। आजकल शहरों में लोग डिस्को जंक्शन लगाकर पंजाबी पॉप और फ़िल्मी धुनों पर नृत्य करते है। मंगलकामनाओं के साथ लोहड़ी के भोग को सभी में वितरित किया जाता है।
सिंधी समुदाय के लोग भी इस त्यौहार को "लाल लोई" के नाम से मानते है।
लोहड़ी पर्व के व्यंजन
लोहड़ी के पर्व पर गुड़,तिल,मूँगफली आदि से विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाये जाते है। पंजाब का प्रसिद्ध भोजन मकई की रोटी और सरसों का साग इस पर्व में उल्लास के साथ स्वाद और सुगंध का बेशुमार मेल है।सिंधी समुदाय के लोग भी इस त्यौहार को "लाल लोई" के नाम से मानते है।
मकर संक्रांति का पर्व
लोहड़ी के तुरंत बाद अगले दिन या उसके बाद मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारतवर्ष में बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। आमतौर पर यह पर्व १४ व १५ जनवरी को मनाया जाता है। यह त्यौहार पूर्णरूप से सूर्य देव से सम्बंधित है।मकर संक्रांति पर्व का महत्त्व
"मकर संक्रांति" में मकर से तात्पर्य राशि से है जबकि संक्राति का अर्थ प्रवेश से है। यह पर्व सूर्य देव का मकर राशि में आगमन के अवसर पर मनाया जाता है। मकर संक्राति के बाद दिन बड़े होने लगते है।इस अवधि में सूर्य भगवान उत्तरायण में प्रवेश करते है जिसे धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। मकर संक्राति का पर्व धार्मिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है ,इस दिन गंगा स्नान कर, व्रत, जप-तप और दान आदि किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन किया हुआ व्रत , जप-तप, दान मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है। इसे दान का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन के बाद सभी प्रकार के मंगल कार्य आरम्भ हो जाते है।मकर संक्रांति पर्व का पौराणिक महत्त्व
पौराणिक कथानुसार इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से मिलने के लिए उनके लोक में गए थे और उन्हें अपने श्राप से मुक्त किया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन महानदी देवी गंगा समुन्द्र से मिली थी। ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण गंगा नदी में किया था।एक अन्य कथा के अनुसार महाभारत काल में पितामह भीष्म ने इस दिन ही अपनी आत्मा को देह मुक्त किया था। अतः मान्यता अनुसार उत्तरायण में देह त्याग से प्राणी जन्म -मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
मकर संक्रांति पर्व का उत्सव अन्य प्रदेशों में
भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न-विभिन्न नामों से मनाया जाता है। भारत के अधिकतर राज्यों में इसे मकर संक्राति के नाम से मनाया जाता है। जबकि गुजरात में इसे उत्तरायण, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में माघी, असम में भोगली बिहु, पश्चिम बंगाल में पौष संक्राति और तमिलनाडु में पोंगल के नाम से भी जाना जाता है। बिहार और उत्तर प्रदेश में इस पर्व को खिचिड़ी के नाम से भी जाना जाता है।
महाराष्ट्र में भी इस पर्व को बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। यहाँ पर यह पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है। पर्व का पहला दिन भोगी कहलाता है। इस दिन भगवान सूर्य देव की अर्चना की जाती है और इस दिन का आनंद लोग पतंग उड़ाकर लेते है। इस पर्व का दूसरा दिन संक्रांति कहलाता है। इस दिन औरतें अपनी पारम्परिक वेशभूषा में तैयार होकर हल्दी कुमकुम एक दूर को लगाकर इस उत्सव को मानती है। इस दिन आपस में एक दूसरे को उपहार देने का प्रचलन है। इस त्यौहार का अंतिम दिन किंकरांत कहलाता है। इस दिन किंकरांत नामक राक्षस का अंत हुआ था। अतः इस उतसव को हर्षोल्लास के साथ तिल गुड़ खाकर आपसी सदभाव से मनाया जाता है।
मकर संक्रांति पर्व के व्यंजन
इस दिन लोग खिचड़ी का सेवन और दान करते है। मुख्यतः तिल, मूँगफली और गुड़ से बने विभिन्न व्यंजन इस पर्व के अवसर पर खाये जाते है। जिनमे तिल के लड्डू , हलवा, मूँगफली की पटटी और गजक आदि प्रमुख है।पहले इन व्यंजनों को घर में ही तैयार किया जाता था। जिसकी सुगंध से पूरा घर महक उठता था और एहसास होता किसी पर्व के आने का। परन्तु अब सब कुछ बाज़ार में उपलब्ध है। कहीं न कहीं हमारी वयस्तता हमें हमारी संस्कृति से दूर कर रही है।
मकर संक्रांति पर्व पर माघ मेले का आयोजन
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में त्रिवेणी के संगम पर इस अवसर पर माघ मेले का आयोजन होता है। यह मेला धार्मिक दृश्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह मेला पौष पूर्णिमा के पहले स्नान से शुरू होता ओर शिवरात्रि के अंतिम स्नान के बाद इसका समापन होता है।
मकर संक्रांति पर्व पर विश्व पतंग उत्सव का आयोजन
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मकर संक्रांति पर्व पर पतंग उड़ाने का महत्त्व
बाज़ारो में पतंगों की दुकानें बाज़ार की रौनक में चार चाँद लगा देती है। छोटे-बड़े सभी लोग पतंग उड़ाने में बढ़ -चढ़ के हिस्सा लेते है। वैसे तो इस समय पर पतंग उड़ाने के कुछ फ़ायदे भी बताये गए है, मसलन पतंग उड़ाने से सूर्य का प्रकाश हमारे शरीर को कई प्रकार के रोगों से बचाता है। शरद ऋतु के प्रभाव से हमारा शरीर कई प्रकार के रोगों की चपेटे में आ जाता है, इसलिए सूर्य का प्रकाश हमारे शरीर को इन रोगों से लड़ने की शक्ति देता है।
यह पर्व वास्तव में चार दिनों का उत्सव है, जिसकी शरुआत भोगी पोंगल से होती है। इस दिन भगवान इंद्र की पूजा की जाती है और अपनी ख़राब पुरानी वस्तुओं को अलाव जलाकर उसमें समर्पित कर दिया जाता है। सभी लोग नये-नये वस्त्र धारणकर ईश्वर से अपने जीवन में खुशहाली की प्रार्थना करते है।
लोग अपने घरों को कॉलम रंगोली से सजाते है ा कॉलम रंगोली पारम्परिक तौर से चावल के आटे से तैयार विभिन्न प्रकार की आकृतियों को कहते है। रंगोली से घरों को सजाना दक्षिण भारत की एक पारम्परिक कला है।पोंगल के अवसर पर जगह-जगह कॉलम रंगोली प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है।
पोंगल पर्व और उसका महत्त्व
दक्षिण भारत में इस अवसर पर पोंगल पर्व मनाया जाता है। दक्षिण भारत में मनाये जाने वाला यह पर्व वास्तव में फसल की कटाई पर मनाया जाता है।यह पर्व वास्तव में चार दिनों का उत्सव है, जिसकी शरुआत भोगी पोंगल से होती है। इस दिन भगवान इंद्र की पूजा की जाती है और अपनी ख़राब पुरानी वस्तुओं को अलाव जलाकर उसमें समर्पित कर दिया जाता है। सभी लोग नये-नये वस्त्र धारणकर ईश्वर से अपने जीवन में खुशहाली की प्रार्थना करते है।
लोग अपने घरों को कॉलम रंगोली से सजाते है ा कॉलम रंगोली पारम्परिक तौर से चावल के आटे से तैयार विभिन्न प्रकार की आकृतियों को कहते है। रंगोली से घरों को सजाना दक्षिण भारत की एक पारम्परिक कला है।पोंगल के अवसर पर जगह-जगह कॉलम रंगोली प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है।
इस पर्व का दूसरा दिन सूर्य पोंगल जिसे थाई पोंगल के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान सूर्य देव की आराधना की जाती है। इस दिन चावल, मूंग दाल, दूध, गुड़ और मेवे डालकर एक व्यंजन बनाया जाता है जिसे पोंगल कहते है। पोंगल का भोग ईश्वर को अर्पित करने के बाद सभी को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
इस पर्व का तीसरा दिन पशुधन को समर्पित होता है। इस दिन गाय, बैल आदि को तरह-तरह से सजाया जाता है। उन्हें वेंन पोंगल,गुड़, शहद आदि खाने में दिया जाता है। इस दिन पशुधन की पूजा की जाती है जिसे मट्टू पोंगल के नाम से जाना जाता है। तमिल में मट्टू से तात्पर्य पशुधन से होता है।
पर्व का चौथा व अंतिम दिन कानुम पोंगल कहलाता है। इस दिन लोग अपने सगे सम्बन्धियों से मुलाकात करते है और पर्व पर बने विभिन्न भोजन का आनंद लेते है । उत्तर भारत के भाई दूज पर्व की तरह, इस दिन भाई अपनी बहनों के घर जाते है। बहनें भाई के जीवन में खुशहाली की मंगलकामनाये करती है।
इस प्रकार पोंगल के पर्व का समापन होता है, जो हमें प्रेम, खुशहाली और मेहनत का सन्देश देता है।
पर्वो की इस धरा पर पर्वो के यह मेले जीवन को सहजता, प्रेम और ख़ुशी से जीने की सीख देते है।
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