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रावण | RAVAN

रावण

रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त और उपासक था । उसने भगवान शिव को प्रसन्न कर  अनेकों शक्तियाँ प्राप्त की । भगवान शिव के परम भक्तों मे उसका स्थान सर्वश्रेष्ट है। वह भगवान शिव का ऐसा भक्त था, जिसने भगवान शिव के द्वारा दिए हुए नाम “रावण” को अंगीकार किया । 

दशानन को रावण क्यों कहते हैं ?  

रावण को उसका यह नाम अहंकारवश  कैलाश पर्वत को अपने बाहुबल से उठाने के परिणामस्वरूप प्राप्त हुआ था, जब भगवान शिव ने अपने अंगूठे के भार से रावण की भुजा को कैलाश पर्वत के नीचे दबा दिया और उसके अहंकार को चूर-चूर किया । परंतु इस घोर विपत्ति और पीड़ा की स्थिति मे भी उसने भगवान शिव की तांडव स्तुति की रचना कर डाली । उसकी इस स्तुति से पूरा ब्रह्मांड गुंजायमान हो गया जिसके फलस्वरूप भगवान शिव ने प्रकट होकर उसे “रावण” नाम दिया था।

परम ज्ञानी रावण 

रावण 4 वेदों, 6 शास्त्रों और 10  दिशाओं का  निपुण ज्ञाता था उसकी गिनती बहुत बड़े ज्ञानियों मे की जाती है । इसका अलावा वह एक अच्छा राजनितज्ञ, प्रकाण्ड पंडित,  निपुण संगीतज्ञ और रचनाकार था ।  उसने बहुत से ग्रंथों और भगवान शिव की स्तुति की रचना की । उसने एक वाद्य यंत्र की रचना भी की जो “रावनहत्था” के नाम से आज भी प्रसिद्ध है ।

इतना वैभवशाली होने के बावजूद रावण अपने मन के विकार जो समय और प्रसिद्धि के हिसाब से बदलते है से हार गया । यह विकार निर्मल जल की भांति है जो अपने असली स्वरूप मे शीतलता प्रदान करता है परंतु वही जल अग्नि के संपर्क मे आने से अपनी शीतलता खो देता है ।

उसके विनाश का कारण उसके मन के दस विकार बने जो इस प्रकार हैं -

पहला विकारकाम वैसे तो प्रेम का अंग  है परंतु काम का विकृत रूप वासना है। रावण का यह विकार पराई स्त्री पर उसकी बुरी नजर से प्रकट होता है । 

दूसरा विकार – क्रोध  बना । अत्याधिक क्रोध प्रतिशोध को जन्म देता है। क्रोध मन का वह विकार जो बुद्धि को हर लेता है । अपनी बहन की कटी  नाक  देखकर उसका क्रोध इतना तीव्र हो गया कि  वो प्रतिशोध की ज्वाला मे जलाने लगा ।    

तीसरा कारण उसका लोभ बना जिसने तृष्णा का रूप लेकर उसे अत्यधिक लोभी बना दिया। अत्यधिक लोभ तृष्णा का रूप ले लता है, यह मनुष्य की भूख को किसी वस्तु आदि के प्रति लालायित कर देता है । लंका और पुष्पक विमान को उसने अपने लोभवश हासिल किया।

चौथा कारण उसका मोह बना जिसने अज्ञानता का रूप ले उसे सिताहरण के अधर्म पर विवश कर दिया । वह अपनी बहन के मोह मे  धर्म-अधर्म का अंतर भूल गया । 

पाचवाँ  विकारमाया यानि मायावी शक्तियां और धन । अपनी ही शक्तियों के इंद्रजाल मे वह फंस गया। उसकी अपनी ही शक्तियों ने उसे भ्रमित कर दिया । उसी प्रकार माया भी मनुष्य की बुद्धि को भ्रमित कर देती है । संकट के समय रावण की कोई भी माया काम नहीं आयी । 

छटा कारण उसका मद बना । जिसकी  उन्मत्तता मे उसने अपने शुभचिंतकों तक का तिरस्कार कर दिया । रावण ने अपनी शक्ति के मद मे अपने शुभचितकों तक की अवहेलना कर डाली । उसके तरिस्कार का पात्र उसका अपना भाई विभीषण भी बना । 

सातवाँ विकार मात्सर्य यानि उसकी ईर्ष्या बनी, जिसने वैमनस्‍य का रूप ले लिया । ईर्ष्या जो मनुष्य को अंदर से खोखला कर देती है। उसकी इस ईर्ष्या ने उसे सर्वश्रेष्ट और शक्तिशाली बनने की इच्छा के चलते अधर्म के पथ पर अग्रसर कर दिया । अपनी इसी ईर्ष्या के चलते उसमे अपने सौतेले भाई कुबेर तक से युद्ध किया ।  

आठवाँ कारण उसकी इच्छा बनी । जिसने लालसा का रूप ले लिया । पूरे विश्व मे अपने आप को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के प्रयास ने उसने कितने ही लोगों का अपमान तक कर डाला । अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए उसने देवगण तक को अपना बंदी बना डाला था । 

नौवां कारण उसका गर्व बना जिसने अहंकार का रूप ले उसकी बुद्धि को हर लिया । अपनी अर्जित शक्तियों और ताकत पर गर्व करना शोभा देता है परंतु अपनी इन्हीं शक्तियों पर अत्यधिक गर्व ही अभिमान का कारण बनता  है ।  कहते है – अहंकार मनुष्य के ज्ञान को नष्ट कर देता है । 

दसवां कारण उसकी अपनी बुद्धि बनी जो इन नौ विकारों के वशीभूत हो भ्रष्ट हो गई । वह अच्छाई और बुराई के अंतर को भूल गया । इन नौ विकारों ने उसे भ्रमित कर दिया, इसीलिए वो  प्रभु राम को पहचान न सका । इसलिए कहते हैं - “विनाश काले विपरीत बुद्धि”

इसी प्रकार हमारे मन मे उपजे विकार प्रसिद्धि और एशवर्य की परकाष्ठा हैं । 

हम इन विकारों को एक सरल उधारण से भी समझ सकते हैं – जैसे एक पका हुआ फल अपने शुद्ध रूप मे सुरुचिपूर्ण स्वाद देता है परंतु वही फल अपने अशुद्ध रूप मे सड़  जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि फल के अंदर चल रही क्रिया अपनी परकाष्ठा पर पहुचते ही उसे दूषित कर देती है । इसी प्रकार रावण के गुण-अवगुण मे परिवर्तित हो गए।  

हर  वर्ष  रावण दहन क्यों किया जाता है ?

 रावण दहन एक ओर हमे यह बताता है कि  हमारे मन  मे व्यापात  दस  विकार अमर है और दूसरी ओर समय रहते हमें अपने इन विकारों  पर विजय प्राप्त करने की सीख देता है, जो हम अपने सद कर्मों से प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए रावण दहन वास्तव मे इन दस विकारों का दहन है जिसे  हम  हर  वर्ष दशहरा, विजयादशमी आदि नामों से मानते हैं ।       

भगवान राम और रावण की  कथा  हमे यह संदेश देती है कि  हम  अपने अवगुणों  पर अपने गुणों से विजय प्राप्त कर सकते है । 

ॐ नमः शिवाय: 

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