निमंत्रण और सत्कार
निमंत्रण और आमंत्रण मे अंतर
निमंत्रण का एक अन्य रूप आमंत्रण है। निमंत्रण और आमंत्रण को प्राय: एक ही रूप मे लिया जाता है परंतु इस दोनों मे बहुत फर्क है। मसलन निमंत्रण सब आम और खास को दिया जाता है परंतु आमंत्रण कुछ खास को ही दिया जाता है। आमंत्रण से तात्पर्य आदरपूर्वक आग्रह करना और बुलाना होता है । पहले निमंत्रण आमंत्रण का ही रूप था आदरपूर्वक न्योता देना और प्रेम भाव से आमंत्रित अतिथि का स्वागत करना आमंत्रण देने वाले का प्रमुख कर्तव्य था ।
निमंत्रण की पुरानी व्यवस्था
पहले निमंत्रण खाली एक औपचारिकताभर न होकर अतिथि सत्कार का एक सूचक थी। जहां निमंत्रित व्यक्ति को प्रेमपूर्वक जलपान करना और एक उचित सम्मान देना प्रमुख उद्देश्य था, साथ ही निमंत्रित व्यक्ति भी ऐसे कार्यक्रम मे अपनी यथाशक्ति सहयोग भी करते थे। परंतु आज के नवीन युग मे हम अपने उन शिष्टाचारों की बलि देते जा रहे हैं। आज निमंत्रण एक औपचारिकता भर ही प्रतीत होता है।
आज की व्यवस्था बहुत ही दूषित होती जा रही है। मैं दूषित शब्द इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि न निमंत्रण देने वाले को और न निमंत्रण पाने वाले को फर्क पड़ता है। निमंत्रण और सत्कार का वो अनूठा मेल अब देखेने को बहुत कम ही प्राप्त होता है।
निमंत्रण का आधुनिक रूप
आज के आधुनिक युग मे निमंत्रण और सत्कार का तरीका भी बदल गया है। आजकल निमंत्रण डाक, मोबाईल और व्हाटसाप आदि तरीकों से भी भेजे जाते हैं। निमंत्रण एक जन से लेकर सपरिवार का हो सकता है। निमंत्रण एक ऐसी व्यवस्था है जो दो लोगों और दो परिवारों के आपसी मेल-जोल को बढ़ाती है। निमंत्रण बिना सत्कार के बेमल-सा प्रतीत होता है। कहने का तात्पर्य यह है की निमंत्रण के बाद सत्कार न होना उपहास और अपमान का विषय है । वहीं बिना निमंत्रण सत्कार आपके स्वपन दर्शन का बोध मात्र है।
न विद्यते तिथिर्यस्य स: अतिथि: - जिसके आने की कोई तिथि न हो वह अतिथि है और उसका सत्कार यथा शक्ति करना चाहिये। यहां सत्कार निमंत्रण के सत्कार से भिन्न है, परंतु यहां सत्कार के महत्त्व को दर्शाने के लिए इन पक्तियों को प्रस्तुत किया गया है। हम उस संस्कृति का हिस्सा हैं जहां “ अतिथि देवो भव :” अथार्थ जहां अतिथि को देवतुल्य की संज्ञा दी गई है और उसके सत्कार को विशेष महत्त्व दिया गया है।
पहले और आज के निमंत्रण मे जमीन और आसमान का अंतर है । पहले निमंत्रण एक औपचारिक आग्रह न होकर आदरपूर्वक किया गया आग्रह होता था। तब निमंत्रित व्यक्ति का आदर सत्कार निमंत्रण देने वाले का सर्वोच्च दायित्व होता था किन्तु समय बदला और धीरे-धीरे निमंत्रण के तौर-तरीकों मे भी बदलाव हो गया। आज निमंत्रण मात्र एक औपचारिकता भर है, आज के युग मे निमंत्रण का यथार्थ वर्णन काका हाथरसी की रचना “दहेज की बारात” मे निम्न पक्तियों मे झलकता है।
जा दिन एक बारात को मिल्यौ निमंत्रण-पत्र
फूले-फूले हम फिरें, यत्र-तत्र-सर्वत्र
यत्र-तत्र-सर्वत्र, फरकती बोटी-बोटी
बा दिन अच्छी नाहिं लगी अपने घर रोटी
कहँ 'काका' कविराय, लार म्हौंड़े सों टपके
कर लड़ुअन की याद, जीभ स्याँपन सी लपके
यह पंक्तियां आज के निमंत्रण प्राप्त व्यक्ति की प्रवृत्ति को दर्शाती है।
आज के दौर मे निमंत्रण एक ऐसी व्यवस्था का रूप ले चुकी है,जहां आपका सत्कार केवल बाहरी दिखावा मात्र है। मनुष्य को आडंबर बहुत प्रिय हैं और उसने अपनी इस इच्छा पूर्ति हेतु विभिन्न प्रकार की व्ययस्थाओं का निर्माण किया जैसे विवाहोत्सव, जन्मोत्सव इत्यादि ।
विवाहोत्सव का चित्रण
आज के विवाहोत्सव का एक सटीक चित्रण इस प्रकार है। आज लोग बेसब्री से निमंत्रण का इंतजार करते है –निमंत्रण का इंतजार पहले भी इसी प्रकार किया जाता था । परंतु आज का दृष्टिकोण कुछ अलग है ।
आज विवाह की जलपान व्यवस्था बहुत ही बड़े पैमाने पर की जाती है। विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को अथितियों को स्वयं ग्रहण करने हेतु रखा जाता है। विभिन्न प्रकार के स्टॉल लगाए जाते है जहां विभिन्न प्रकार के रुचिकर व्यंजन निमंत्रित जन द्वारा ग्रहण किए जाते हैं। शादी के पंडाल ओर स्थान पर जहां एक और जलपान की व्यवस्था होती है वही दूसरी ओर उसी जगह न्योता देने वालों का एक शगुन काउन्टर भी होता है । जहां निमंत्रित व्यक्ति अपनी इच्छानुसार शगुन देकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है। कुछ जगह पर इसी समय निमंत्रित व्यक्ति का तिलक लागकर सत्कार किया जाता है और जलपान आदि ग्रहण करने का आग्रह किया जाता है। यह मात्र एक औपचारिकताभर ही प्रतीत होती है। इसके विपरीत वहीं निमंत्रित जन का मुख्य उद्देश्य रुचिकर भोजन का स्वाद लेना मात्र ही होता है। उनका शुभाशीष और शुभकामनाए मात्र एक औपचारिकता सी ही प्रतीत होती है ।
जलपान की यह व्यवस्था मानो किसी होटल की व्यवस्था जैसी व्यवस्था लगती है। जहां शगुन काउन्टर पर बिल देकर आप विभिन्न प्रकार के रुचिकर व्यंजनों का आनंद ले सकते हैं । निमंत्रित व्यक्ति का न्योता यदि सपरिवार है तो वह किसी होटल मे जाकर इस प्रकार की व्यंजनों का सेवन करे तो उसे अच्छा- खासा बिल देना पड़ेगा वहीं इस प्रकार के निमंत्रण मे मात्र कुछ शगुन देने पर विशिष्ट और रुचिकर भोजन का आनंद लिया जा सकता है।
जलपान और हमारा स्वास्थ्य
पहले व्यंजन बहुत सीमित मात्र मे परोसे जाते थे जिनका हमारे स्वास्थय पर विपरीत प्रभाव न के बराबर होता था । परंतु आज की व्यवस्था मे इंसान एक दिन मे अपने उदर मे कई प्रकार के व्यंजनों का भोग करता है जिससे विषाक्त भोजन (Food Poisoning) का खतरा बढ़ जाता है ।
व्ययस्थाओ के बदलते दौर मे निमंत्रण और सत्कार के इस अनूठे मेल को बिगड़ते देख बहुत पीड़ा का अनुभव होता है, परंतु आज की पीढ़ी को इस व्यवस्था मे कोई खामी नजर नहीं आएगी क्योंकि भेद करने हेतु आप के पास उसका अनुभव होना भी जरूरी है।
इस प्रकार निमंत्रण और सत्कार का मेल आज के दौर मे औपचारिकत मात्र ही है। आधुनिक युग का अनुसरण करते हुए जहां हमे अपनी कुरितयो को त्यागना चाहिये उसके विपरीत हम अपनी खास विशेषताओ की बलि देकर अपने आप को निर्बल बना रहे हैं ।
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