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महाप्रभु जगन्नाथ की अद्भुत रथ यात्रा

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श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर भारतीय राज्य उड़ीसा के सबसे प्रभावशाली मंदिर में से एक है, जिसका निर्माण गंगा राजवंश के एक प्रसिद्ध राजा अनंत वर्मन चोडगंगा देव द्वारा 12वीं शताब्दी मे पुरी के समुद्र तट पर किया गया था। पुरी को प्राचीन काल से कई नामों से जाना जाता था जैसे- श्री क्षेत्र, शाक क्षेत्र, शंखक्षेत्र, पुरुषोत्तम क्षेत्र, नीलांचल,नीलगिरि और उत्कल  भी कहा जाता है।  इसके अलावा जगन्नाथ पुरी मंदिर को ‘यमनिका तीर्थ’ भी कहा जाता है, जहाँ हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान जगन्नाथ की उपस्थिति के कारण मृत्यु के देवता ‘यम’ की शक्ति समाप्त हो गई थी ।  इस मंदिर को "सफेद पैगोडा" भी कहा जाता था और यह चारधाम तीर्थयात्रा (बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम) का एक हिस्सा है। मंदिर की बनावट और वास्तुशिल्प  श्री जगन्नाथ भगवान का मुख्य मंदिर कलिंग वास्तुकला में निर्मित एक प्रभावशाली और अद्भुत संरचना है, जिसकी ऊँचाई 65 मीटर है। मंदिर की बाहरी दीवार के पूर्वी, दक्षिणी, पश्चिमी और उत्तरी मध्य बिंदुओं पर चार द्वार हैं, जिन्हें "सिंहद्वार (शेर का द्वार), अश्व द्वार (घोड़े का द्वार), व्याघ्र द्वार (ब

दहेज एक अभिशाप और आधुनिक नारी

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दहेज क्या है ? दहेज का मतलब शादी के बाद दुल्हन के परिवार से दूल्हे के परिवार को नकद या उपहार का भुगतान है। दहेज को उर्दू में जहेज़ कहते हैं। भारत में इसे दहेज , हुँडा या वर-दक्षिणा के नाम से भी जाना जाता है तथा वधू के परिवार द्वारा नक़द या वस्तुओं के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है। इसे भारत के पूर्वी भागों में औनपोट कहा जाता है। दहेज प्रथा का प्रचलन  हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति में कई प्रकार की विवाह पद्धतियां प्रचलित है। इसमें से आर्ष विवाह पद्धति में वर्णन है कि पिता वस्त्राभूषणों से सुसज्जित पुत्री का विवाह योग्य वर से करता है तथा उसे उपहार आदि प्रदान करता है । यहीं से दहेज की उत्पत्ति होती है । वैदिक काल मे विवाह के दौरान और उपरांत नववधू को विभिन्न प्रकार के उपहार देने की परंपरा थी – जो निम्न प्रकार है -  1- अध्यग्नि -- वैवाहिक अग्नि के सम्मुख दिया गया उपहार 2- अध्यवह्निका - वधू को पतिगृह जाते समय दिया गया उपहार 3- प्रीतिदत्त - सास- ससुर द्वारा स्नेहवश दिए गए उपहार  4- पतिदत्त- पति द्वारा दिये गए उपहार  5- पदवंदनिका - नतमस्तक प्रणाम करते समय बड़ों द्वारा दि

निमंत्रण और सत्कार

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निमंत्रण एक ऐसी व्यवस्था है जिसमे किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को सहर्ष स्वयं और सम्पूर्ण परिवार के साथ किसी विशेष कार्यक्रम मे संमलित होने के लिए आमंत्रित किया जाता है। इसे न्योता व बुलावा आदि नामों से भी जाना जाता है। मनुष्य के सामाजिक होने का यह एक बहुत बड़ा सबूत है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और निमंत्रण एक ऐसी व्यवस्था है जो उसे समाज से जोड़ती है। निमंत्रण विवाह और जन्मोत्सव आदि विशेष अवसर पर दिया जाता है, जिसमे आमंत्रित जनों का मान –सम्मान सर्वप्रिय होता है।  जैसा कि  पहले बताया निमंत्रण को एक अन्य नाम न्यौता के रूप मे भी जाना जाता है जो ग्रामीण क्षेत्रों मे अधिक प्रचलित हैं।  निमंत्रण और आमंत्रण मे अंतर  निमंत्रण का एक अन्य रूप आमंत्रण है। निमंत्रण और आमंत्रण को प्राय: एक ही रूप मे लिया जाता है परंतु इस दोनों मे बहुत फर्क है। मसलन निमंत्रण सब आम और खास को दिया जाता है परंतु आमंत्रण कुछ खास को ही दिया जाता है। आमंत्रण से तात्पर्य आदरपूर्वक आग्रह करना और बुलाना होता है । पहले निमंत्रण आमंत्रण का ही रूप था आदरपूर्वक न्योता देना और प्रेम भाव से आमंत्रित अतिथि का स्

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में नव वर्ष उत्सव

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भारतीय नववर्ष उत्सव  अंग्रेजी महीने के हिसाब से चाहे नया साल १ जनवरी को मनाया जाता है । परंतु भारत मे  अलग-अलग राज्य मे नववर्ष की शुरुआत अलग-अलग समय पर होती है। वैसे तो दैनिक कार्यक्रम प्रायः अग्रेजी महीनों के आधार पर ही चलते हैं, परंतु धार्मिक पर्व, अनुष्ठानों और विवाह महूर्त आदि के लिए इनका बहुत अधिक महत्व है जो हमारी संस्कृति से भी जुड़ा हुआ है। दुनियाभर मे जहां नववर्ष केवल एक समय में ही मनाया जाता है, वही भारतवर्ष मे नववर्ष अलग-अलग समय पर अलग-अलग नामों से मनाया जाता है –  चलिए जानते हैं विभिन्न प्रकार से मनाये जाने वाले नववर्ष उत्सव के विषय में।  भारत मे नववर्ष की गणना दो आधार पर होती हैं – पहली सूर्य पंचांग और दूसरी चंद्र पंचांग के द्वारा । पंचांग कैलंडर को कहते हैं – जिसमे दिन, तारीख, महीनों और पर्वों का विवरण छपा होता है। भारतवर्ष मे कुछ जगह पर सूर्य पंचांग के आधार पर नववर्ष मनाया जाता हैं जबकि कुछ जगह पर चंद्र पंचांग के आधार पर ।  भारत मे विभिन्न धर्म, संप्रदाय और भाषा के लोग रहते हैं, जो अपनी धर्म और संस्कृति के आधार पर नववर्ष मानते हैं ।  विक्रम संवत: हिन्दू धर्मानुसार नववर्ष

गाय की आत्मकथा | Autobiography of cow

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Photo by  Juliana Amorim  on  Unsplash मेरा यह लेख मेरे दिल के बहुत करीब पशु गाय के विषय मे हैं। हिन्दू धर्म मे गाय की महत्ता मात्र एक पशु नहीं अपितु एक ईश्वरीय स्वरूप की है, जो अपने दुग्ध से हमारा पौषण करती है। गाय को धेनु, कामधेनु आदि नामों से भी जाना जाता है ।  गाय की आत्मकथा एक मार्मिक विषय है। ३३ करोड़ देवी देवताओ को अपने अंदर समाहित करने वाली गाय आज अपने ही उद्धार के लिए तरसती प्रतीत होती है । समुन्द्र मंथन के समय देवीय रूप से अवतरित गाय जिसे वो सम्मान प्राप्त था जो एक देवी देवता को प्राप्त होता है, मानव के लोभवश आज जीवन का एक कटु सत्य झेल रही है। चलिए शुरू करते है- गाय की आत्मकथा - मैं गाय हूँ । मैं भारतवर्ष मे पाया जाने वाला एक देवीय पशु कहलाती हूँ । लोग मुझे गौ माँ व माता के रूप मे भी पूजते है। मैं एक दुधारू पशु हूँ ।  मेरा वर्तमान चाहे कठोर और विदारक है परंतु मेरा भूत बहुत ही वैभवशाली रहा है ।  मेरा वैभवशाली इतिहास  समुन्द्र मंथन से प्राप्त मैं कामधेनु कहलाई। मैं भी समुन्द्र से प्राप्त चौदह रत्नों मे से एक थी। ऋषियों द्वारा मेरा देवतुल्य सत्कार किया जाता था और मैं अपने पंचगव्य

रावण | RAVAN

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रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त और उपासक था । उसने भगवान शिव को प्रसन्न कर  अनेकों शक्तियाँ प्राप्त की । भगवान शिव के परम भक्तों मे उसका स्थान सर्वश्रेष्ट है। वह भगवान शिव का ऐसा भक्त था, जिसने भगवान शिव के द्वारा दिए हुए नाम “रावण” को अंगीकार किया ।  दशानन को रावण क्यों कहते हैं ?   रावण को उसका यह नाम अहंकारवश  कैलाश पर्वत को अपने बाहुबल से उठाने के परिणामस्वरूप प्राप्त हुआ था, जब भगवान शिव ने अपने अंगूठे के भार से रावण की भुजा को कैलाश पर्वत के नीचे दबा दिया और उसके अहंकार को चूर-चूर किया । परंतु इस घोर विपत्ति और पीड़ा की स्थिति मे भी उसने भगवान शिव की तांडव स्तुति की रचना कर डाली । उसकी इस स्तुति से पूरा ब्रह्मांड गुंजायमान हो गया जिसके फलस्वरूप भगवान शिव ने प्रकट होकर उसे “रावण” नाम दिया था। परम ज्ञानी रावण  रावण 4 वेदों, 6 शास्त्रों और 10  दिशाओं का  निपुण ज्ञाता था उसकी गिनती बहुत बड़े ज्ञानियों मे की जाती है । इसका अलावा वह एक अच्छा राजनितज्ञ, प्रकाण्ड पंडित,  निपुण संगीतज्ञ और रचनाकार था ।  उसने बहुत से ग्रंथों और भगवान शिव की स्तुति की रचना की । उसने एक वाद्य यंत्र की रचना भी